कौन हमारे स्वप्न महल के
अनुभावों के इंद्रधनुष के
सतरंगी तोरण पीछे छुप
लज्जा के तिरछे घूँघट से
अंजन-रंजित नयन युगल से
शरमाकर उस नेह दृस्टि से
छुप छुप कर यूँ देख रहा है
सम्मोहन सा फेंक रहा है....?
मानस के इस शुभ्र निलय में
छिटकी शीतल रजत तारिका
रटने लगी पुराने दोहे
स्मृति की यह कुटिल सारिका
मानस के उसपार क्षितिज से
फिरसे वही वेदना पूरित
गीत विरह का कूक रहा है
मंतर जैसा फूंक रहा है...?
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