उन भेज दिया सब लोगों को उस जगह जहाँ था गीध भोज
हुंकार रहे थे वीर बधूटी संग जोर से खोज खोज
भिड़ गए वीर से वीर सूर से सूर महाँ उस रण में
लेकर चम्मच तलवार ढाल थाली की उस प्रांगण में
मै बना भीरु एक कोने में था खड़ा सोंचता एक युक्ति
इस भोज अंश को पाकर के कैसे पाऊँ मैं सहज मुक्ति
फिर किया स्मरण मैंने भी पूर्वज की शौर्य कथाओं का
राणा सांगा के युद्व महाराणा की परम व्यथाओं का
मेरे अंदर भी जाग गई अब एक वीरता की उमंग
अब महाँ वीरगति पाने को था फड़क रहा अब अंग अंग
तलवार उठाई चम्मच की चमकी थाली की सुदृढ़ ढाल
होकर चौकन्ना फुर्तीला घुस पड़ा युद्ध में वीर चाल
नर नारी वाल बृद्ध सबको मैं लगा देखने एक दृष्टि
गीता के माह ज्ञान की थी चहु ओर हो रही परम वृष्टि
था नहीं भटकना मार्ग से पाना था सबको एक लक्ष्य
केवल हिम्मत वाला पायेगा आज यहाँ पर भोज भक्ष्य
करके अरियों का मर्दन अब मैं भी पहुंचा था जहाँ माल
पूड़ी चावल पनीर छोले सब कर लीन्हा स्टॉक माल
काजल की कोठी में घुसकर फिर कौन बचा है बिना दाग
पर भोजवीर की सोभा होते हैं शब्जी के पीत दाग
मैं हूँ वीरों का वंशज यह दिखलाया भोज अंश लेकर
पर अगले गीध भोज में मै जाऊंगा रेन कोट लेकर
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