रविवार, 3 नवंबर 2019

ऐसे में फिर कौन बचाये इन नस्लों को महाँ पतन से





सिंह नाद से पहले सोंचें कहीं श्वान दल जाग जाए
अंधियारे की विकट गली में अगर रौशनी ही खो जाए
धन की चौखट पर जब विद्या एक निवाला माग रही हो
सत्ता के दरबारों में जब दीन सारदा स्तुति गाये
जब औंधे मुंह पड़ी जवानी अपनी किस्मत कोस रही हो
भूँखी हो मजबूर सिंहनी मुह में पत्ते खोंस रही हो
ऐसे में फिर कौन बचाये इन नस्लों को महाँ पतन से
बगिया की मालिन ही जब खुद गरल-बेल को पोश रही हो

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