हाँथ में छड़ी, कंठ में माला
खाये पान बनारस बाला
सुबह सुबह अपनी बगिया में
टहल रहे थे मोटे लाला
हाँथ हिलाकर पास बुलाये
अपने माली पर चिल्लाये
"बने बनाये उल्लू हो क्या
पेड़ छांट के यहाँ गिराये?"
वहीँ कहीं पर किसी पेंड पर
शांत चित्त हो आँख बंद कर
उल्लू एक वहां बैठा था
सुबह सुबह के योगासन कर
टोंक रहा हूँ माफ़ कीजिये
लेकिन इतना साफ़ कीजिये
उल्लू से इंसान बड़ा है
ऐसा कैसे? साफ़ कीजिये
तर्क शास्त्र का पंडित था वह
खगकुल महिमा मंडित था वह
मोटे लाला अब क्या बोलें?
कई तर्क दे यूँ बोला वह
यह पूरा संसार जानता
हर पशु पक्षी यही मानता
जग में महामूर्ख मानव है
बिन कारण ही रार ठानता
मारी नदियां काटे जंगल
काटे पेड़ ग्रसे जिसका फल
इसने करदी हवा विषैली
बैठ मौत पर गाए मंगल
घर में खुद बारूद भरेगा
सोंचे कोई और मरेगा
नहीं चल रहा दाना पानी
लेकिन रण की बात करेगा
हम पशु पक्षी भी लड़ते हैं
भोजन भार्या हित भिड़ते हैं
लेकिन मानव क्यों लड़ जाते
रोज बतंगड़ क्यों बढ़ जाते?
बिल्ली मौसी बता रही थी
कल ही तो कुछ सिखा रही थी
मुर्ख आदमी बटा हुआ है
धर्मो में कुछ सुना रही थी
एक कल्पना की जन्नत में
किसी परम प्रभु की मन्नत में
उलझा है इंसान बेचारा
मर कट जाता मूर्ख बेचारा
घर में खिचड़ी हो न हो पर
हूरों की सोंचा करता है
क़त्ल पडोसी का करने में
वो शबाब सोंचा करता है
छोड़ो खैर मुझे क्या लेना
तुमरी झोली त्वार चबेना
मगर मूर्ख जन की उपमा में
मेरा नाम कभी मत लेना
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