रविवार, 3 नवंबर 2019

कबूतरों के देश में


कबूतरों के देश में
आओ चंदू तुम्हे सुनाऊँ छोटी एक कहानी
रोज़ सुनाया करती थीं जो मुझको मेरी नानी

दूर कहीं पर एक देश में बहुत कबूतर रहते थे
रंग रंग के भांति भांति के बहुत कबूतर रहते थे
सभी कबूतर पढ़े लिखे थे बहुत अधिक वे ज्ञानी थे
कई पुजारी कितने नेता अध्यापक विज्ञानी थे
कोर्ट कचहरी भी थे उनके मस्जिद थे देवालय थे
गिरिजाघर थे थाने उनके दंडालय विद्यालय थे
कई धर्म थे कई जातियां कई देव कितने ईश्वर
उनकी अपनी कई पोथियाँ जिनमे वर्णित परमेश्वर
कुछ थे ऊँचे कुछ नीचे थे कुछ कुलीन कुलहीन कई
रहते थे समाज में ऐसे जैसे जैसे लिखा सही
उनका अपना संविधान था संसद का संचालन था
आरक्षण था अनुरक्षण था कानूनों का पालन था
धर्म जाति के झगड़े उनके न्यायलय में जाते थे
काले कोट कबूतर उनके सब झगडे निपटाते थे
कई कबूतर दिनभर उड़कर दाना दाना चुनते थे
कई कबूतर बैठे बैठे गुटरू गुट रूं करते थे
कई कबूतर कर्ज चुकाते जीवित ही मर जाते थे
कई कबूतर घूंस कमाई अपने घर भर जाते थे
किसी कबूतर की बेटी जब शादी लायक होती थी
बाप रात दिन करे कमाई मम्मी रात सोती थी
कई कबूतर नेता बनकर उनको नियम सिखाते थे
कई कबूतर नेताओं के खुद चमचे बन जाते थे
अच्छा चंदू मुझे बताओ कैसी लगी कहानी
तुमको कभी सुनाऊंगा फिर एक राजा एक रानी




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

जिज्ञासु समर्पण, कवि परिचय, प्रस्तावना एवं वंदना

जिज्ञासु    डॉ . बृजमोहन मिश्र   समर्पण   पूज्या माता स्वर्गीया मंगला देवी एवं पूज्य पिता श्री रामू लाल मिश्र को ...