रविवार, 3 नवंबर 2019

साथियों बढ़ते चलो सब संकटो को पार करके


क्या हुआ जो पथ हमारा ज्योति से जगमग नहीं है
क्या हुआ जो कंटको से हींन अपना मग नहीं है
क्या हुआ जो नियति हो अरि रोकती है पथ निरंतर
क्या हुआ संघर्ष पथ पर सफलता पग पग नहीं है

हम नहीं वे छोड़ दे जो मार्ग डरकर आँधियों से
वे नहीं जो भटक जाते भोग सुख की वादियों से
हम पथिक हैं विजय पथ के कदम पीछे कब करेंगे
पहुँच कर गंतव्य को जगमग करें घी के दियों से

हमें कब चिकने पथों का पथिक बनना है सुहाया?
बिना श्रम के फल मिले यह हमें बिलकुल भी भाया
जीत लेंगे गर भुजाओं में हमारे शौर्य बाँकी
बिरासत में मिला तख्तो-ताज कब है रास आया?

मरुस्थल को चीर गिरि को लाँघ सागर पार करके
रहे बढ़ता कारवा तुम बैठना मत हार करके
शिराओं में रक्त तन में शौर्य की हुंकार जबतक
साथियों बढ़ते चलो सब संकटो को पार करके

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