रविवार, 3 नवंबर 2019

असाढ़ की बदली


असाढ़ की बदली

उछल कर पश्चिम क्षितिज की गोद से
जा चढ़ी पछुआ पवन की पीठ पर
बहुत ही नटखट बदलिया खिलखिलाती
बढ़ चली कुछ गुनगुनाती मोद से

कर रही अठखेलियाँ चलती डगर
डालदीं दो बून्द ठण्डी चपरगंजे शीश पर
फिर हँसी वह ज़ोर से ताली बजाकर
चमकते चपला चुटीले शीश पर

पोखरों को मुँह चिढ़ाती
वनों को अंगुठा दिखाती
वह हठीली बढ़ चली
पवन पीठी चढ़ चली

किन्तु देखा हाँथ निज सिर पर धरे
नयन आशादीप उसके बुझ चले
भूँख का भूगोल चित्रित झुर्रियों में
कृषक सूखी भूमि पर कैसे पले?

देखकर सहमी खड़ी
.....
फिर वह आगे बढ़ी
हुई बदली अश्रु पूरित
द्रवित हो बरसी बड़ी

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