असाढ़ की बदली
उछल कर पश्चिम क्षितिज की गोद से
जा चढ़ी पछुआ पवन की पीठ पर
बहुत ही नटखट बदलिया खिलखिलाती
बढ़ चली कुछ गुनगुनाती मोद से
कर रही अठखेलियाँ चलती डगर
डालदीं दो बून्द ठण्डी चपरगंजे शीश पर
फिर हँसी वह ज़ोर से ताली बजाकर
चमकते चपला चुटीले शीश पर
पोखरों को मुँह चिढ़ाती
वनों को अंगुठा दिखाती
वह हठीली बढ़ चली
पवन पीठी चढ़ चली
किन्तु देखा हाँथ निज सिर पर धरे
नयन आशादीप उसके बुझ चले
भूँख का भूगोल चित्रित झुर्रियों में
कृषक सूखी भूमि पर कैसे पले?
देखकर सहमी खड़ी
.....फिर न वह आगे बढ़ी
हुई बदली अश्रु पूरित
द्रवित हो बरसी बड़ी
उछल कर पश्चिम क्षितिज की गोद से
जा चढ़ी पछुआ पवन की पीठ पर
बहुत ही नटखट बदलिया खिलखिलाती
बढ़ चली कुछ गुनगुनाती मोद से
कर रही अठखेलियाँ चलती डगर
डालदीं दो बून्द ठण्डी चपरगंजे शीश पर
फिर हँसी वह ज़ोर से ताली बजाकर
चमकते चपला चुटीले शीश पर
पोखरों को मुँह चिढ़ाती
वनों को अंगुठा दिखाती
वह हठीली बढ़ चली
पवन पीठी चढ़ चली
किन्तु देखा हाँथ निज सिर पर धरे
नयन आशादीप उसके बुझ चले
भूँख का भूगोल चित्रित झुर्रियों में
कृषक सूखी भूमि पर कैसे पले?
देखकर सहमी खड़ी
.....फिर न वह आगे बढ़ी
हुई बदली अश्रु पूरित
द्रवित हो बरसी बड़ी
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