आ रही चली मंथर मंथर
मेघों की गज सेना धूसर
चमकाती चपला असि कराल
बरसाती बून्द बाण भूपर
आच्छादित क्रोधित मार्तण्ड
भागी भीता गर्मी प्रचण्ड
मृत आक ढाक से चाटुकार
सूखे का शासन खण्ड खण्ड
फिर गूंज उठीं नदियां कल कल
कल तक जल बिन थीं जो व्याकुल
मछलियाँ तैरतीं अगणित दल
लहरातीं लहरें फिर रलमल
झिल्ली झंकृत मुखरित दादुर
आनंद भरे केकी के सुर
जैसे अच्छे नृप को पाकर
जय जय करता हो सारा पुर
रंध्रों में बैठे छुपे साँप
जलप्लवन देख सब गए काँप
जीवन का खतरा गए भाँप
सत्वर भागे करते विलाप
बागों में फिर आयी बहार
महके बेला सिंचित फुहार
है शष्य श्यामला भू अपार
फिर क्यों न कृषक गाये मल्हार?
मेघों की गज सेना धूसर
चमकाती चपला असि कराल
बरसाती बून्द बाण भूपर
आच्छादित क्रोधित मार्तण्ड
भागी भीता गर्मी प्रचण्ड
मृत आक ढाक से चाटुकार
सूखे का शासन खण्ड खण्ड
फिर गूंज उठीं नदियां कल कल
कल तक जल बिन थीं जो व्याकुल
मछलियाँ तैरतीं अगणित दल
लहरातीं लहरें फिर रलमल
झिल्ली झंकृत मुखरित दादुर
आनंद भरे केकी के सुर
जैसे अच्छे नृप को पाकर
जय जय करता हो सारा पुर
रंध्रों में बैठे छुपे साँप
जलप्लवन देख सब गए काँप
जीवन का खतरा गए भाँप
सत्वर भागे करते विलाप
बागों में फिर आयी बहार
महके बेला सिंचित फुहार
है शष्य श्यामला भू अपार
फिर क्यों न कृषक गाये मल्हार?
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