तुम जिधर चलो दुनियां चल दे
तुम जहाँ रुकों जग रुक जाए
तुम बैठो तो दरबार लगे
सम्राटों के सिर झुक जाएँ
तुम फूंक अगर दो साथ साथ
तो उड़ जाएँ अरियों के दल
हुंकार भरो गर एक साथ
तो कौन रुके किसमें है बल?
हे भारत माँ के वीर पुत्र
छोड़ो अब आपस के विवाद
मत झगड़ो लेकर जाति पंथ
मिलना इससे केवल विषाद
हम चलें मिलाकर अगर कदम
हर पंथ विजय-पथ बन जाए
भारत फिर से हो विश्वगुरु
हर शीश गर्व से तन जाए
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