रविवार, 3 नवंबर 2019

मीत कहो इस शाम लिखूं क्या



मीत कहो इस शाम लिखूं क्या
सारे दिन जो पंथ निहारे, रात गुजारे गिनती तारे
गयी दिवाली सूखी सूखी छट शायद जाएं पिया रे
उस विरहाकुल श्रमिकवधू के छूंछे से अरमान लिखूं क्या?
कहो मीत इस शाम लिखूं क्या?
बीस बर्ष तक रानी बिटिया बुलबुल सी चहका करती थी
पापा की वह राजकुमारी जिद करती रूठा करती थी
विदा हो रही उस बेटी के आंसू के कुछ नाम लिखूं क्या?
कहो मीत इस शाम लिखूं क्या?
कृषक पिता की कठिन कमाई, पुत्र शहर में करे पढ़ाई
उन्हें किताबों में बस दिखती, प्राण प्रिया की सूरत भाई
श्रमिक पिता की उम्मीदों का जैसे काम तमाम लिखूं क्या?
कहो मीत इस शाम लिखूं क्या?
कहो लिखूं नेता के बादे, उजला कुरता स्याह इरादे
किस जादू से पांच साल में कैसे बन गए अमीरजादे
एक इलैक्शन में हो गए कैसे गुल्लू से गुलफाम लिखूं क्या?
मीत कहो इस शाम लिखूं क्या?


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