रविवार, 3 नवंबर 2019

माना कि गंतव्य दूर है



माना कि गंतव्य दूर है
पंथ बिछे कंटक मरु गिरि हैं
निर्जन पथ घनघोर तिमिर है
पास नहीं गृह गाँव नगर है
किन्तु आज भी कोई तो है
तुमसे हर पल कहता जो है
"
विजय पंथ के वीर पथिक तुम
बढ़े चलो तुम! बढे चलो तुम!
तुम्हे क्षितिज के पार पहुंचकर
उदयाचल के श्रृंग लाँघ कर
रवि से मिलने जाना होगा
उसे साथ ले आना होगा"

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