तर्कों का भाव कषैला हो
विश्वास कहीं मटमैला हो
भ्रम जाल दूर तक फैला हो
जब शोर ज्ञान का गला घोट
लेकर कुतर्क की कठिन ओट
अभिभेदक बाण चलाता हो
निज अहम् भाव दिखलाता हो
ऐसे में चुप रहना अच्छा
मूढ़ता समर में विजयी भी
कहलाता मूढ़ परम सच्चा
चुपके से उठ जाना अच्छा
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