फिर कविता की कर्ण-पिशाची
आकर इतने सुबह भोर में
कानो में है शोर मचाती
"कुछ तो लिक्खो,कुछ तो गाओ"
मैं क्या गाऊँ? चल सोने दे,
जो होता उसको होने दे
कवि के कविता लिख देने से
क्या होगा? जा अब सोने दे
जब युवा देश का हुआ सुप्त,
सब तेज ओज उसका विलुप्त
अपनी पहचान भुलाता सा,
बेसुरे राग को गाता सा
जीवन उसका हो लक्ष्यहीन
यूँ घूम रहा हो महादीन
चिंतन केंद्रित जननांगों पर
वह मोहित पड़ा अपांगों पर
वह चला जा रहा प्रेत ग्रस्त
कर्तव्य लक्ष्य सब हुए अस्त
इन्टरनेट जैसे इंद्रजाल
में बंधा युवा मोहित विशाल
उस तरुणाई पर क्या गाऊँ?
मैं कैसे उसको समझाऊं?
जो होता उसको होने दे
.....अब सोने दे।
आकर इतने सुबह भोर में
कानो में है शोर मचाती
"कुछ तो लिक्खो,कुछ तो गाओ"
मैं क्या गाऊँ? चल सोने दे,
जो होता उसको होने दे
कवि के कविता लिख देने से
क्या होगा? जा अब सोने दे
जब युवा देश का हुआ सुप्त,
सब तेज ओज उसका विलुप्त
अपनी पहचान भुलाता सा,
बेसुरे राग को गाता सा
जीवन उसका हो लक्ष्यहीन
यूँ घूम रहा हो महादीन
चिंतन केंद्रित जननांगों पर
वह मोहित पड़ा अपांगों पर
वह चला जा रहा प्रेत ग्रस्त
कर्तव्य लक्ष्य सब हुए अस्त
इन्टरनेट जैसे इंद्रजाल
में बंधा युवा मोहित विशाल
उस तरुणाई पर क्या गाऊँ?
मैं कैसे उसको समझाऊं?
जो होता उसको होने दे
.....अब सोने दे।
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