शुभ कार्यकलाप से जो नित ही
निज तात का मान बढ़ाता रहे
मृदु वैन सनेह भरी मुस्कान से
मातु का जी हुलसाता रहे
ऐसो जग- रंजन राम सदा
निज नेह सुधा बरसाता रहे
जो खेलहु में निज बंधु सखा को
जिताये परंतु हराये नहीं
समझे सबको निज मित्र सदा
किसी दीन का चित्त दुखाये नहीं
ऐसो जग रंजन राम हमें
हरसाये सदा तरसाये नहीं
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