रविवार, 3 नवंबर 2019

कछुआ और खरगोश



आओ चंदू तुम्हे सुनाऊँ फिरसे वही कहानी
बचपन में हर रोज सुनाती थीं जो बूढ़ी नानी
कछुआ और खरगोश रहा करते थे छोटे वन में
बड़ा प्रेम था उन दोनों में खुशियां थी जीवन में
कछुआ जल का राजा करता जल में शैर सपाटे
और शशक भरता रहता मैदानों में फर्राटे
एक दिवस कछुवे ने आकर खरहे को ललकारा
हिम्मत हो तो दौड़ लगालो चलकर नदी किनारा
कछुआ शशक सुबह जा पहुँचे जहाँ दौड़ होनी थी
कौन करेगा निर्णय किसकी जीत हार होनी थी
तभी वहां पर एक बाबाजी लिए कमण्डल आए
वहां खड़े होकरके उसने ऐसे नियम बनाए
खरहे का दस मील बराबर कछुवे का दस मीटर
पिछले पैर बांधकर दौड़े खरहा पानी पीकर
कछुवे को बादाम मिलेगी सरकारी पैसे से
खरहा दूनी फीस भरेगा अपने ही पैसे से
पांच दिनों के बाद रेस को आए दोनों ऐसे
बाबाजी ने नियम बनाये उनके जैसे जैसे
खरहा हारा कछुआ जीता वहां दौड़ में भाई
उसको मिली जीत की ट्राफी खरहा फीस गँवाई
अब कछुआ खरगोशों को है दौड़ सिखाया करता
पैर बाँध कर कैसे दौड़े रोज बताया करता
कैसी लगी कहानी तुमको बोलो चंदू बेटा?
तुमको कभी सुनाऊंगा फिर एक राजा का बेटा

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