रविवार, 3 नवंबर 2019

अब किधर चली तरुणाई है..?




हांथो में ज्वाल मशाल लिए,
नयनो को अपने लाल किये,
देखो क्यों प्यासी खड्ग उठा,
यह किसे जलाने आयी है ....
अब किधर चली तरुणाई है?
क्या नफरत की विषबेल कभी
सुख के फूलों से लदी कहीं?
क्या कहीं रक्त की स्याही से
समृद्धि कथा है लिखी गयी?
नफरत का उत्तर नफरत है
गाली का उत्तर है गाली
इस जग दर्पण में सदा दिखी
खुद को खुद की परछाई है...
(खुद की प्रतिध्वनि सुनाई है)
अब किधर चली तरुणाई है?
मर रहा कृषक है क्षुधा त्रास
गंगा तटवासी ग्रसित प्यास
विद्यालय यहाँ निरक्षर हैं
खुद अस्पताल ही बना लाश..
देखो ये पगली तेल धार से
आग बुझाने आयी है...
अब किधर चली तरुणाई है?
फेंको नफरत की चंद्रहास
आओ सब बैठें पास पास...
इक गीत सृजन का तुम गाओ
झंकृत कर मन वीणा सहास...
मत बहको ये जादूगरनी
तुझको बहकाने आयी है
(
ये कुटिला वेश्या राजनीति
तुझको भरमाने आयी है)

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