सत्य के कटु बोल ही सुखकर भले हैं
मृदुल शब्दों ने यहाँ कितने छले हैं
कटुक औषधि कब किसी के प्राण लेती
सैकड़ों ही शर्करा खा मौत के पथ पर चले हैं
अब कहाँ वो दौर जब सब शत्रु को ललकारते थे
बार करते नहीं छुपकर वक्ष पर ही मारते थे
आज खतरा शरहदो के पार से आता कहाँ है
वही छुपकर घात करते जोकि मित्र पुकारते थे
मृदुल शब्दों ने यहाँ कितने छले हैं
कटुक औषधि कब किसी के प्राण लेती
सैकड़ों ही शर्करा खा मौत के पथ पर चले हैं
अब कहाँ वो दौर जब सब शत्रु को ललकारते थे
बार करते नहीं छुपकर वक्ष पर ही मारते थे
आज खतरा शरहदो के पार से आता कहाँ है
वही छुपकर घात करते जोकि मित्र पुकारते थे
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