रविवार, 3 नवंबर 2019

हौंसले मजबूत चाहें कदम थक चूर हों


हौंसले मजबूत चाहें कदम थक चूर हों
सिर सगर्व तना हो चाहें लाख हम मजबूर हों
परिस्थिति की आँधियाँ हमको डिगा सकती नहीं
पहुचकर कर ही चैन लेंगे लक्ष्य चाहें दूर हों

हाँथ जोड़े कब किसी को संकटों ने यहाँ छोड़ा?
आंसुओं पर दया खाकर काल ने कब चक्र मोड़ा?
माँगने से एक दो सिक्के मिला करते हैं लेकिन
जीत लेते वीर सिंहासन मुकुट चढ़ शौर्य घोड़ा

एक दो रण हार जाना हार कहलाती नहीं है
तुम नहीं हारे अगर हिम्मत अभी हारी नहीं है
भुजाओं में शक्ति, मन में जीत का संकल्प जब तक
तब तलक कोई चुनौती वीर को भारी नहीं है

प्रवल रवि को ढक लिया करतीं हैं छोटी बदलियाँ
घड़ी भर को अंधेरों में डुबा देतीं आँधिया
क्या कभी डरकर अंधेरों से झुका है वीर दिनकर?
तोड़ तम की घोर कारा जगमगाता चल दिया

सत्य के कटु बोल ही सुखकर भले हैं


सत्य के कटु बोल ही सुखकर भले हैं
मृदुल शब्दों ने यहाँ कितने छले हैं
कटुक औषधि कब किसी के प्राण लेती
सैकड़ों ही शर्करा खा मौत के पथ पर चले हैं

अब कहाँ वो दौर जब सब शत्रु को ललकारते थे
बार करते नहीं छुपकर वक्ष पर ही मारते थे
आज खतरा शरहदो के पार से आता कहाँ है
वही छुपकर घात करते जोकि मित्र पुकारते थे


अग्नि तभी जब ताप शेष, गर नहीं भष्म है निश्चय


सिंह विपिन का राजा अपना कब परिचय बतलाता?
बाघ किसी को भला कभी है परिचय पत्र दिखाता?
कभी हंस ने दिया किसी को अपने कुल का परिचय?
कभी गरुण क्या कहीं किसी को अपना गोत्र बताता?

स्वर्ण नहीं बोला करता है मैं हूँ सोना सच्चा
परिचय नहीं दिया करता यूँ कभी वीर का बच्चा
काम व्यक्ति का स्वयं बता देता है उसका परिचय
अग्नि तभी जब ताप शेष, गर नहीं भष्म है निश्चय

जिज्ञासु समर्पण, कवि परिचय, प्रस्तावना एवं वंदना

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