शनिवार, 28 अगस्त 2010

कारे कजरारे नैनो की सुन्दरता अब मै न लिखूंगा

कारे कजरारे नैनो की सुन्दरता अब मै न लिखूंगा
और सलोनी सूरत की अब बिलकुल चर्चा मै न करूँगा
पुष्प पांखुरी अब न दिखेंगी मुझको उनके अधर युगल में
और हजारों उपमाओ को अब न मै बर्बाद करूँगा

नहीं मिल रही मुह को रोटी, सोने को थोड़ी सी छाया
जिनके हिस्से में लगता है दुनिया का बिष ही बिष आया
जिनका शोषण होता रहता अनदेखे अनजान करों से
उनने इस भारत में अबतक आज़ादी का क्या सुख पाया ?

उनके जीवन के अन्धिआरे में शायद कुछ अर्थ पढूंगा
खादी वाले ठेकेदारों से उनकी कुछ बात करूँगा
जिनके बच्चो को खिचड़ी दे माल मलाई खा जाते हैं
उस अस्सी प्रतिशत भारत के अधिकारों की बात लिखूंगा



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