बुधवार, 25 अगस्त 2010

प्रिय अब तुम कुछ भी मत बोलो

नयन सिन्धु में उठने वाली हर उर्मी को पढ़ सकता हूँ।

अधरों के हर स्पंदन की परिभाषाएँ गढ़ सकता हूँ।

भाव शैल को शव्द तराजू में मत तोलो।

प्रिय अब तुम कुछ भी मत बोलो॥

शब्द एक झूंठा काशिद, जाने क्या बोले।

मन में 'हाँ' हो, फिर भी तो यह 'ना' ही बोले।

मौन एक सुन्दर भाषा , बस मुंह मत खोलो।

प्रिय अब तुम कुछ भी मत बोलो।

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