नयन सिन्धु में उठने वाली हर उर्मी को पढ़ सकता हूँ।
अधरों के हर स्पंदन की परिभाषाएँ गढ़ सकता हूँ।
भाव शैल को शव्द तराजू में मत तोलो।
प्रिय अब तुम कुछ भी मत बोलो॥
शब्द एक झूंठा काशिद, जाने क्या बोले।
मन में 'हाँ' हो, फिर भी तो यह 'ना' ही बोले।
मौन एक सुन्दर भाषा , बस मुंह मत खोलो।
प्रिय अब तुम कुछ भी मत बोलो।
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