होंठों पर मुस्कान सजाकर,
बातों में कुछ शहद मिलाकर,
भरकर थोडा प्रेम दृगो में,
कुछ थोडा सा नेह दिखाकर.
सारे जग को मीत बना लें,
नई प्रेम की रीत चला दें,
नफरत का खंजर हम फेंके,
चलो प्रेम का दीप जला लें..
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जिज्ञासु समर्पण, कवि परिचय, प्रस्तावना एवं वंदना
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तुम जिधर चलो दुनियां चल दे तुम जहाँ रुकों जग रुक जाए तुम बैठो तो दरबार लगे सम्राटों के सिर झुक जाएँ तुम ...
नफरत का खंजर हम फेंके,
जवाब देंहटाएंचलो प्रेम का दीप जला लें..
बहुत खूब .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!