सोमवार, 23 अगस्त 2010

चलो प्रेम का दीप जला लें

होंठों पर मुस्कान सजाकर,
बातों में कुछ शहद मिलाकर,
भरकर थोडा प्रेम दृगो में,
कुछ थोडा सा नेह दिखाकर.

सारे जग को मीत बना लें,
नई प्रेम की रीत चला दें,
नफरत का खंजर हम फेंके,
चलो प्रेम का दीप जला लें..

1 टिप्पणी:

  1. नफरत का खंजर हम फेंके,
    चलो प्रेम का दीप जला लें..

    बहुत खूब .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!

    जवाब देंहटाएं

जिज्ञासु समर्पण, कवि परिचय, प्रस्तावना एवं वंदना

जिज्ञासु    डॉ . बृजमोहन मिश्र   समर्पण   पूज्या माता स्वर्गीया मंगला देवी एवं पूज्य पिता श्री रामू लाल मिश्र को ...