ताप अनुकूल,
खिले हैं फूल,
भरे नवरंग ...
बृक्ष रत रास,
मिला कर हाँथ,
लता के संग ...
भरे नव जोश,
पुष्प हर रोज,
लिए होंठो पर हलकी ओस...
कली की ओर,
ज़रा झुक और,
चूमकर अधरों को मदहोश...
सुनाता गान,
छेंड़ प्रिय तान,
लिए मधु प्यास...
चूस मकरंद,
भरे आनंद,
मधुप मधुमास...
विबिध ले रंग,
मण्डली संग,
भरे पिचकारी...
गोपियों संग,
खेलते रंग,
गोप वनबारी...
होलिकोत्सव की बधाइयाँ
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जिज्ञासु समर्पण, कवि परिचय, प्रस्तावना एवं वंदना
जिज्ञासु डॉ . बृजमोहन मिश्र समर्पण पूज्या माता स्वर्गीया मंगला देवी एवं पूज्य पिता श्री रामू लाल मिश्र को ...
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तुम जिधर चलो दुनियां चल दे तुम जहाँ रुकों जग रुक जाए तुम बैठो तो दरबार लगे सम्राटों के सिर झुक जाएँ तुम ...
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