कौन जो मेरे ह्रदय में इस तरह,
बिना दस्तक दिए सीधा आ गया है?
ह्रदय पट पर लगा था जो धैर्य का ताला
तोड़ कर सीधा ह्रदय में छा गया है।
जाग कर भी सका कुछ न बोल, क्यों?
आज सम्मोहन में ऐसा आ गया हूँ ।
चैन लूटी, नीद लूटी, लूट ली दुनियां
सब लुटाकर भी मै हँसता आ गया हूँ ।
उस लुटेरे के करों में न था कोई शस्त्र,
डर न था उसको किसी क़ानून का।
नयन असि ने भेद डाले हैं सभी परित्राण ,
कर जरा स्मित अधर वह छीन लेता प्राण ।
किस कचहरी आज मै जाकर करूँ फ़रियाद?
और मैं किसको दिखाऊँ भावना के घाव?
खुश रहो जीते रहो तुम धन्य सुंदर चोर,
लोग समझेंगे धनी था इसलिए लूटा।
मेरी सांसों में यही दहशत समाई रहती है
जवाब देंहटाएंमज़हब से कौमें बँटी तो वतन का क्या होगा।
यूँ ही खिंचती रही दीवार ग़र दरम्यान दिल के
तो सोचो हश्र क्या कल घर के आँगन का होगा।
जिस जगह की बुनियाद बशर की लाश पर ठहरे
वो कुछ भी हो लेकिन ख़ुदा का घर नहीं होगा।
मज़हब के नाम पर कौ़में बनाने वालों सुन लो तुम
काम कोई दूसरा इससे ज़हाँ में बदतर नहीं होगा।
मज़हब के नाम पर दंगे, सियासत के हुक्म पे फितन
यूँ ही चलते रहे तो सोचो, ज़रा अमन का क्या होगा।
अहले-वतन शोलों के हाथों दामन न अपना दो
दामन रेशमी है "दीपक" फिर दामन का क्या होगा।
@कवि दीपक शर्मा
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काव्यधारा टीम
Shubhkaamnaon sahit Swagat.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा मित्र . सतत लिखते रहो. शुभ कामनाएं
जवाब देंहटाएंब्लोगिंग जगत में स्वागत है
जवाब देंहटाएंलगातार लिखते रहने के लिए शुभकामनाएं
सुन्दर रचना के लिए बधाई ।
पूरी रचना हिन्दी में लिखते तो अच्छा होता ।
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