काम धाम ने फुर्सत छीनी ,
समय चोर ने छीने सपने ,
यहीं कहीं पर कल खोये थे ,
लोरी थपकी के सुख अपने ...
इसी हाट में कल बेंची थी
मैंने अपनी हर अभिलाषा ,
खूंटी कौड़ी मोल बिकाई
मेरे अरमानो की आशा ...
घुटन भरे कमरे की खातिर
बेचीं शीतल तरुवर छाया,
कुछ कागज़ के टुकड़ो में बस
दिवा-स्वप्ना गिरवीं कर आया...
लेकिन कोई छीन न पाया
उन अदभुत अनमोल क्षणों को,
उन यादों को , उन वादों को
उस स्मृति के छिन्न कणों को ...
समय चोर ने छीने सपने ,
यहीं कहीं पर कल खोये थे ,
लोरी थपकी के सुख अपने ...
इसी हाट में कल बेंची थी
मैंने अपनी हर अभिलाषा ,
खूंटी कौड़ी मोल बिकाई
मेरे अरमानो की आशा ...
घुटन भरे कमरे की खातिर
बेचीं शीतल तरुवर छाया,
कुछ कागज़ के टुकड़ो में बस
दिवा-स्वप्ना गिरवीं कर आया...
लेकिन कोई छीन न पाया
उन अदभुत अनमोल क्षणों को,
उन यादों को , उन वादों को
उस स्मृति के छिन्न कणों को ...
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