गुरुवार, 22 सितंबर 2011

कहाँ गई वह बात पुरानी...
दादी कीवह गीत कहानी...
मम्मी की वह मीठी बानी
और कहाँ परिओं की रानी...
जाने कब मै वनिक बन गया...
लगा बेचने अपनी सांसे...
रंग -बिरंगी दुनियां मेरी...
गई छोड़ कर आज यहाँ से ...
जीवन के प्याले की मदिरा...
बिना पी ही सुख गई क्या?॥
जिन सपनो को देखा था वह॥
कहीं राह में छुट गए क्या..

शुक्रवार, 11 मार्च 2011

गोपियों संग, खेलते रंग, गोप बनवारी...

ताप अनुकूल,
खिले हैं फूल,
भरे नवरंग ...
बृक्ष रत रास,
मिला कर हाँथ,
लता के संग ...

भरे नव जोश,
पुष्प हर रोज,
लिए होंठो पर हलकी ओस...
कली की ओर,
ज़रा झुक और,
चूमकर अधरों को मदहोश...

सुनाता गान,
छेंड़ प्रिय तान,
लिए मधु प्यास...
चूस मकरंद,
भरे आनंद,
मधुप मधुमास...

विबिध ले रंग,
मण्डली संग,
भरे पिचकारी...
गोपियों संग,
खेलते रंग,
गोप वनबारी...

होलिकोत्सव की बधाइयाँ

सोमवार, 3 जनवरी 2011

जीवन वह जीवन है

निष्प्राण व्याघ्र के चरमो पर, शुख आसन में बैठे तो क्या ।
ले गयी बहा कर जिधर धार, उस तरफ गए तो नाविक क्या ।
केवल सांसो में जीवन को, हर कोई तो जी लेता है ...
संघर्ष और विजयों में गर , जीवन न जिया तो जीवन क्या ।

जीवन वह जीवन है जिसमे गिनते बाघों को गिरा दांत..
जीवन वह जीवन है जिसमे संघर्ष किया हो दिवस रात ॥
जीवन में गर जीवन न हो, स्थिरता हो, निश्चितता हो ...
ऐसे जीवन को जी लेने में नहीं कहीं कुछ ख़ास बात ।

jo sangharshon me jeeta hai, इतिहास उन्ही को लिखता है।
शिवराज, सिकंदर, बीर सुभाषों की ही चर्चा करता है ।
जाने कितने ही भीरु पलायन करते मारे जाते हैं...
जीवन वह जीवन होता है, जो जीते जी ना मरता है॥

जिज्ञासु समर्पण, कवि परिचय, प्रस्तावना एवं वंदना

जिज्ञासु    डॉ . बृजमोहन मिश्र   समर्पण   पूज्या माता स्वर्गीया मंगला देवी एवं पूज्य पिता श्री रामू लाल मिश्र को ...