इस जगत के तीन कोने
एक कोने तुम खड़े हो
दुसरे में हम खड़े हैं
तीसरे में और जाने कौन ?
हिम अनल का ताप है यह...
मौन का परिताप है यह ...
जलाती यह बर्फ थोड़ी आग देदो...
नीरवता का शोर असह्य, और तोड़ो मौन ?
तीसरे में और जाने कौन?
शेर के स्वागत में जाने आज क्यों
इस तरह आँखें बिछाए एक कपिला धेनु?
और सागर बन पपीहा मागता है बूंद
श्वेत घन इतरा रहा है यहाँ कारन कौन?
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