रविवार, 14 नवंबर 2010

प्यारा बचपन


दादी की वे गीत कहानी

और कहाँ परिओं की रानी

दादा का वह राजा वेटा

बात बात पर रूठा बैठा

बीत गया वह भोला बचपन

उड़ा ले गया साथ लड़कपन

दिवास्वप्न वे परी कथाएँ

पंछी बन उड़ गयी कहाँ ये

बचपन! तेरे अधरों से हंसती है जन्नत

बचपन! प्रभुका तेज चमकता तेरे मुखपर

सारे रागों से मीठी यह तेरी बोली

प्रभु की मूरत सी यह तेरी सूरत भोली

प्यार सीखना है तो इन बच्चों से सीखो

क्षमा सीखना है तो इन बच्चों से सीखो

जाति धर्मं की कडुवाहट इनमे मत डारो

बचपन को बचपन ही रहने दो प्यारों

जिज्ञासु समर्पण, कवि परिचय, प्रस्तावना एवं वंदना

जिज्ञासु    डॉ . बृजमोहन मिश्र   समर्पण   पूज्या माता स्वर्गीया मंगला देवी एवं पूज्य पिता श्री रामू लाल मिश्र को ...