रविवार, 17 अक्तूबर 2010

इस जगत के तीन कोने

इस जगत के तीन कोने

एक कोने तुम खड़े हो

दुसरे में हम खड़े हैं

तीसरे में और जाने कौन ?

हिम अनल का ताप है यह...

मौन का परिताप है यह ...

जलाती यह बर्फ थोड़ी आग देदो...

नीरवता का शोर असह्य, और तोड़ो मौन ?

तीसरे में और जाने कौन?

शेर के स्वागत में जाने आज क्यों

इस तरह आँखें बिछाए एक कपिला धेनु?

और सागर बन पपीहा मागता है बूंद

श्वेत घन इतरा रहा है यहाँ कारन कौन?

जिज्ञासु समर्पण, कवि परिचय, प्रस्तावना एवं वंदना

जिज्ञासु    डॉ . बृजमोहन मिश्र   समर्पण   पूज्या माता स्वर्गीया मंगला देवी एवं पूज्य पिता श्री रामू लाल मिश्र को ...