शुक्रवार, 27 मार्च 2009

कौन?

कौन जो मेरे ह्रदय में इस तरह,
बिना दस्तक दिए सीधा आ गया है?
ह्रदय पट पर लगा था जो धैर्य का ताला
तोड़ कर सीधा ह्रदय में छा गया है।

जाग कर भी सका कुछ न बोल, क्यों?
आज सम्मोहन में ऐसा आ गया हूँ ।
चैन लूटी, नीद लूटी, लूट ली दुनियां
सब लुटाकर भी मै हँसता आ गया हूँ ।


उस लुटेरे के करों में न था कोई शस्त्र,
डर न था उसको किसी क़ानून का।
नयन असि ने भेद डाले हैं सभी परित्राण ,
कर जरा स्मित अधर वह छीन लेता प्राण ।


किस कचहरी आज मै जाकर करूँ फ़रियाद?
और मैं किसको दिखाऊँ भावना के घाव?
खुश रहो जीते रहो तुम धन्य सुंदर चोर,
लोग समझेंगे धनी था इसलिए लूटा।


जिज्ञासु समर्पण, कवि परिचय, प्रस्तावना एवं वंदना

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