शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

करोड़ी की चिट्ठी आयी



इस रास्ते से सीधे जाना
दायाँ मोड़ पड़े मुड़ जाना

दोनों तरफ दुमहले होंगे
कुत्तों वाले बंगले होंगे
उससे भी तुम आगे जाना
पार्क मिले वहां रुक जाना

थोड़ा सा दाएं मुड जाना
बांये तरफ पड़ेगा थाना...

ठीक सामने पीली कोठी
जिसमे रहता नेता पोथी
हर महीने टेलर बुलवाता
कुरते को ढीला करवाता


उसी गली से सीधे जाना
कचरा ढेर मिले रुक जाना
वहीँ कहीं पर भग्गू, धीरा
दल्लु, मंगत, पिल्लू, हीरा
कचरा टाट बीनते होंगे
रोटी एक ढूंढते होंगे

वहां खड़े होकर चिल्लाना
“मुझे करोड़ी के घर जाना”
कोई तुम्हे बता ही देगा
खोली तुम्हे दिखा ही देगा


गंदे नाले की पटरी पर
तनी मिलेगी फटी चटाई
उसके बेटे दल्लू ने जो
पिछले साल ढेर में पाई
उसमे रहता श्रमिक करोड़ी
नहीं बनाए बनती कौड़ी

ऊँची कोठी के कुत्ते भी
सुबह – सुबह जब सोए रहते
सुख सपनो में खोए रहते
जाग चुका है श्रमिक करोड़ी
टायर जला पका ली थोड़ी
मोटे चावल वाली खिचड़ी

उसके बच्चे मंगत चुन्नी
और पड़ोसी की भी मुन्नी
चले गए हैं कचरा लेने
अपने हिस्से का हक़ लेने


और करोड़ी बाँध पोटली
लेकर एक फावड़ा तसली
जाकर बैठ गया चौराहे
शायद आज मजूरी पाए


तीन दिनों से खाली जाता
सबको कहाँ काम मिल पाता
घर का हुआ कनस्टर खाली
फिर बीमार पड़ी घरवाली


चले आ रहे मोटे लाला
खाए पान बनारस वाला
"सौ पर काम करो तो आओ
नहीं आज बैठे रह जाओ"


दिनभर बहा पसीना आया
सौ का एक नोट ले आया
लगा रहा है जोड़ घटाना
कैसे आज  मिलेगा खाना


उसी करोड़ी की यह चिट्ठी
वहीँ डाकियाजी पहुचना
उसको आज मिलेगा खाना
कल क्या होगा किसने जाना

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